एक सवाल सा?
दिन को अलविदा किया नहीं मैंने,
और ये रात ख़त्म होने आई है,झींगुर कबसे चहचहा रहा है,
और ये हवा की दस्तक शायद किसी का पैग़ाम लाई है,
जवाब दूँ भी तो किसको?
यहाँ सिर्फ़ ख़ामोशी है, तन्हाई है!
और ये हवा की दस्तक शायद किसी का पैग़ाम लाई है,
जवाब दूँ भी तो किसको?
यहाँ सिर्फ़ ख़ामोशी है, तन्हाई है!
ख़ामोशी की आवाज़ सुनी है कभी?
मैं उससे बात कर रहा हूँ,
पागल नहीं मैं, दीवाना भी नहीं,
कौन हूँ? यही खोज रहा हूँ,
शायद एक सवाल हूँ,
या फिर एक जवाब हूँ,
जो हर रात और दिन कुछ ढूँढ रहा हूँ।
— प्रशांत