Wednesday, August 03, 2016

ख्वाइश को पाने की ख्वाइश!

एक शाम ख्वाइश जो ख्वाब-ए-महफ़िल में मिली,
जान पहचान कर, मुझको परखने लगी,
चंचल, खूबसूरत, हसीन, आकर्षण से भरी,
महफ़िल में तनाह जो था अब तक, तनाह नहीं!

ख्वाइश जो महफ़िल-ए-शान है,
दिल में जगाती कई अरमान है,
ख्वाइश जो दिल की मेरे मेहबूबा, रानी, सुल्तान है,
दिल में बसा, सजाऊँ सवारों इसे, मन का फरमान है!

ख्वाब-ए-महफ़िल और रंगीन हो गयी,
हम जो डूबे नशे में थोड़ा सा,
ख्वाइश और हसीन हो गयी!
जाने क्या कहकर ख्वाब के कान में गुम हो गयी!

महफ़िल रूठी, ख्वाब टूटा,
ख्वाइश जो अपना बन न सकी,
ख्वाइश जिसको हम पा न सके...
ख्वाइश जो पूरी न हो सकी!

सुना है ख्वाइश अक्सर ख्वाब-इ-महफ़िल में आती है,
और मैं हूँ, जो जागता रहा ख्वाइश को पाने के लिए!