Friday, March 03, 2017

मैं!

ख्वाब, ख्वाइश और मैं!
वक़्त यूँ ही गुज़रता रहा,
ख्वाब तो हैं,
ख्वाइशें भी हैं,
नाजाने मैं कहाँ हूँ?

--- प्रशांत गोयल