Sunday, June 14, 2020

ख्वाब और ख्वाईशें !

ख्वाइशों से ख्वाब हैं, या ख्वाबों से हैं ख्वाइशें ?
खवाइश जो ख्वाब में देखी मैंने,
ख्वाब जो ख्वाइशों ने दिखाया मुझे,

ख्वाइशें चैन से सोने नहीं देती,
और ये ख्वाब कम्बख्त,
चाय के वक़्त चला आता है हर रोज़ !

एक अजीब सी कशमकश में पड गया हूँ मैं,
ख्वाइशों का क़त्ल कर, पूरा करूँ मैं अपना ख्वाब,
या फिर ख्वाब पूरा हो जाये तो चली आएंगी ये ख्वाइशें?


- प्रशांत गोयल !

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