Thursday, April 26, 2018

रंग!

ये जो भाँती भाँती के रंग है,
लड़ते मरते है क्या हमारी तरह?
भेद तो इनमे भी है,
कोई काला है तो सफ़ेद कहीं,
फिर भी घुल-मिल जाते हैं बादलों में सभी!
पेड़ का पत्ता जो पीला था, 
आज हरा और कल भूरा होगा,
फिर भी मदमस्त हवा में है बेफिक्र झूम रहा!
नीला आकाश, हरा समंदर , इत्मीनान से है रह रहे,
अलग अलग है प्रकर्ति के रंग,
फिर भी खुश और मिल-जुल है रह रहे!
इंसान के खून का रंग तो एक है,
फिर भी क्यों हम लड़-मर रहे, क्यों हैं हम यूँ जुदा-जुदा?

- प्रशांत गोयल!

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