Saturday, July 01, 2017

दो खोजी!

रात के अँधेरे में, सफ़ेद चादर ताने,
देखो! है ये कौन खड़ा?

बादलों का आकार है ये,
या सितारों का परचम है लहरा रहा?

टिमटिमाती बत्तियों का प्रतिबिम्ब है ये,
या है मन का कोई वहम मेरा?

रोज़ रात इसी जगह पे दिखता है,
शायद वो भी,
शायद वो भी, मेरी तरह ही,
कुछ है खोज रहा?

- प्रशांत गोयल!

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