Tuesday, July 26, 2016

दिल्लगी!!

उनका शहर,
उनके लोग,
उनकी महफ़िल,
उनका निमंत्रण,
उनके कर्म,
उनका नासम्झना,
उनका जलाना,
उनकी बेरुख़ी,
उनके सितम!

हमारा इश्क़,
हमारा प्यार,
हमारी मोहब्बत,
हमारा दिल,
हमारी दिल्लगी!

आज भी एक निमंत्रण आया है,
और मैं सज रहा हूँ जलने के लिए,
डर सिर्फ इतना सा है,
हमारा जलना, उनकी महफ़िल में आग न लगा दे कहीं?

--- प्रशांत गोयल!

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