Sunday, June 26, 2016

मौत के पीछे मौत!

काम से लौटते वक़्त, डॉक्टर के पास है जाता,
माँ कब ठीक होगी, यही प्रश्न है दोहराता!
अपने को दिलासा दे, घर को लौट जाता!
छोटी बहन का खाना बनाता, स्कूल का बस्ता सजाता,
लम्बे केशों में तेल मालिश कर, दो दो चोटियां बनाता,
अपनी गौदी में सर रख उसको सुलाता, फिर कहीं खो जाता,
माँ कब घर आयेगी कोई नहीं बतलाता!

इलाज के पैसे कुछ यूँ है बचाता,
पानी पीकर हि हर रोज़ सो जाता!
सुबह उठ फिर काम पे चला जाता,
अपने परिश्रम से पूरे घर को चलाता!
मंदिर कि घंटी में यही ध्वनि है सुनाता,
माँ को ठीक कर भगवन भेजो जल्दी घर, अब रहा नहीं जाता!

विनती कर यही, सड़क पे जो बढ़ाया कदम,
अचानक से वो हवा में उड गया,
रक्त की बही धाराएँ, शरीर हुआ अस्ति-पंजर,
इंसान की रूह काप जाए ऐसा वो मंज़र!

क्यों मैं हूँ यूँ काँप रहा,
इसमें नया क्या है?

नशे में धुत किसी अमीर कि वो नाबालिग औलाद?
या लम्बी होती वो इम्पोर्टेड स्पोर्ट्स कार?
हमारे सिस्टम के वो नये दाऔ-पेंच फिर?
या नयी सुर्ख़ियों में छपता अख़बार?
मौत भी वही, कारण भी वही,
नया है तो बस, एक नया परिवार!

संभाल कर चलाओ गाडी, ओ मेरे यार,
जरा सोचो,
वो बूढ़ी माँ क्यों अस्पताल में मर गयी?
वो छोटी बहन, ना जाने कहाँ बिक गयी?
वो कमाते हुए हाथ, क्यों यूँ ही कट गए?
मौत के पीछे ना जाने कितनी मौतें!

- प्रशांत गोयल!

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