Thursday, May 12, 2016

ट्रैफिक सिग्नल !

चौराहे, तिराहे, दोराहे के सृजन पे आप मुझको पाते हैं,
सुन्दर स्वस्थ शरीर मेरा, बहुत सारी आँखें हैं!
हाँ गूंगा हूँ जरूर मैं, बहरा नहीं!
प्रतिदिन, प्रतिजन के जीवन को मैंने छुआ है!

हूँ जब हरा, होते खुश आप देख मुझे,
लाल हूँ जब, अपना अपमान सहता हूँ!
सतरंगी हुआ तो, अजब सी हड़बड़ देखी है!
हड़बड़ में कुछ लोग लड़ते देखे हैं!

इसी भरी भीड़ में, कुछ चेहरे पहचानता हूँ,
नाम से नहीं, आचरण से!
हॉर्न से हाथ हटता नहीं किसी का,
कोई फ़ोन और मेकअप में व्यस्त है!
कोई आगे भड़ने कि है फ़िराक में,
तो कहीं, हाथ गाडी ढोता वो भूड़ा है चुपचाप खड़ा!
जहाँ एम्बुलेंस को फंसते देखा मैंने,
मिनिस्टर की गाडी निकल जाती है!
कुछ दुआएं बेचते बच्चे देखे,
तो कहीं, सपने खरीदते परिवार!

मानसून  कि पहली बारिश में भीग, दो दिन बीमार जो मैं हुआ,
दो किलोमीटर लम्बे जाम में, आपके अपमान का पात्र बना!

आज सुबह से क्यों शोर सुनाई नहीं देता मुझे?
कल रात लम्बी गाडी ने जो ठोका उसका असर है!
अछा ही है जो बहरा भी हो गया हूँ,
ट्रैफिक सिग्नल पे शोर बहुत है!
फिर भी बखूबी करता हूँ अपना मैं काम,
ना जाने फिर भी क्यों मैं बदनाम?

0 Comments:

Post a Comment

<< Home