Tuesday, June 21, 2016

परिवर्तन!

ढूंढ़ने निकला जब आँगन के आँचल को,
जा बैठा फ्लैट की बालकनी में,
शहरों में वो आँगन कहाँ?

नज़र उठा देखा जो, खुला आसमान,
विराट, हल्का नीला, आज भी वही!
सफ़ेद, काले, पीले, लाल, छोटे, बड़े बादल,
सैर सपाटा करते, आज भी वही!
उडते, सुस्ताते, चेह्चाह्ते, गाना गाते पंछी,
सबको जगाते, आज भी वही!

मंद-मंद हवा, शीतल सहज सी, कानो में कुछ कह गयी,
मेरे गाओं का सन्देशा लायी है!
हाँ! सच ही  तो है, एक अर्सा हुआ वहां गए,
अब जाता भी हूँ गर, तो अधूरा सा!
जहाँ कभी बेफिकरी से मौज मनाते थे,
आज चिंताएं भी साथ जाती हैं!

मुददत बाद आज जाना ये,
आसमान है वही, जिसमे दिन में तारे  ढूंढ़ते थे,
बादल है वही, जिसमे मेहबूबा से बातें करते थे,
पंछी वही, जो उड़ने की चाहत भरते थे,
खुश्बू से भरी, हवा भी है वही!
बदला कुछ भी नहीं!
फिर भी सब बदल गया शायद,
थोड़ा सा  मैं, थोड़ा सा समय,  थोड़ा सा जीने का अंदाज़!

- प्रशांत गोयल!

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