Tuesday, June 13, 2017

चुनौती!!

सांसें लेना सीखा है जबसे,
साथ दे रही हो तुम,
फिर इतनी बेरुखी क्यों?
क्यों, है इतने सितम?

क्या ये जो गुज़रे पल है,
उन्होंने है कठोर बना दिया?
या फिर सीख गयी हो,
तुम भी,
अपने रंग बदलना?

गर थककर, सूख गयी हो तुम,
थोड़ा सा सुस्ता लो,
आराम कर नयी स्फूर्ति जगा लो,
मीलो का फासला जो है तय करना,
नयी ऊँचाइओ को जो है छूना,
खुले गगन में मदमस्त है उड़ना,
या फिर आगे निकल गयी हो तुम?

जानता हूँ, जानता हूँ,
रुकना तुम्हारी फितरत में नहीं है,
जानता हूँ, जानता हूँ,
रुकना तुम्हारी फितरत में नहीं है,
ऐ ज़िन्दगी,
शायद मैं ही पीछे छूट गया हूँ!

फिर से पकड़ लूंगा तुम्हे,
ये वादा रहा,
अगली शिकायत, अगली अर्ज़ी,
सिर्फ तुम्हारी होगी,
चलो ये भी वादा रहा!!

- प्रशांत गोयल 

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