स्लेट!
घर शिफटिंग की परिक्रिया में मिली,
कहीं सामान में दबी, स्लेट!
काली, मुरझाई सी वो स्लेट,
कभी सफ़ेद चाक बत्ती से,
रंग भरा करते थे, हाँ वही स्लेट!
देखा गौर से तो पाया ये,
स्लेट की आज भी दो दुनिया!
एक तरफ खूबसूरत पहाड़,
उगता सूरज, बहती नदिया,
सुन्दर छोटा सा वो घर,
घर के पास एक बड़ा पेड़,
रंग बिरंगे फूल,
नाचता खेलता बचपन,
सुन्हेरा भविष्य!
दूसरी तरफ डरावने पहाड़े!
जिन्हें दो जमा दो चार रट्टा करते थे,
डरावनी ये दुनिया जीवन से कब मिल गयी,
पता ना चला!
आज दो जमा दो पैसा कितना कमाया,
यही सोचा करते हैं!
सोच को स्लेट ने तोडा मेरी,
सरल सवाल से स्तब्ध किया,
फिरसे मिटा इस डरावनी दुनिया को,
कुछ रंग फिरसे भरोगे क्या?
- प्रशांत गोयल!
कहीं सामान में दबी, स्लेट!
काली, मुरझाई सी वो स्लेट,
कभी सफ़ेद चाक बत्ती से,
रंग भरा करते थे, हाँ वही स्लेट!
देखा गौर से तो पाया ये,
स्लेट की आज भी दो दुनिया!
एक तरफ खूबसूरत पहाड़,
उगता सूरज, बहती नदिया,
सुन्दर छोटा सा वो घर,
घर के पास एक बड़ा पेड़,
रंग बिरंगे फूल,
नाचता खेलता बचपन,
सुन्हेरा भविष्य!
दूसरी तरफ डरावने पहाड़े!
जिन्हें दो जमा दो चार रट्टा करते थे,
डरावनी ये दुनिया जीवन से कब मिल गयी,
पता ना चला!
आज दो जमा दो पैसा कितना कमाया,
यही सोचा करते हैं!
सोच को स्लेट ने तोडा मेरी,
सरल सवाल से स्तब्ध किया,
फिरसे मिटा इस डरावनी दुनिया को,
कुछ रंग फिरसे भरोगे क्या?
- प्रशांत गोयल!
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