Sunday, December 10, 2017

दोषी कौन?

अरसे बाद जब ख्यालों ने दस्तक दी,
मन के दरवाज़े पे लगी चटकनी टूट गयी!
ये ख्यालों का हवा का झोंका बड़ा तेज है,
मन का दरवाजा भी, चूं-चूं कर, किलकारियों से रो पड़ा है,
जंग लग गया है शायद, इसके कब्ज़े-पुर्जों को,
बड़े दिनों से ये दरवाजा बंद जो पड़ा है!

शिकायत करूं भी तो मैं किस से?
ख्यालों से या मन से?
ख्याल जो एक अरसे बाद इधर से गुजरे हैं,
मन जो बंद कर दरवाजे को कहीं खो गया है!

जानता हूँ, जानता हूँ,
ना ख्याल दोषी है,
ना मन कसूरवार,
फिर भी कटगरहे में खड़ा कर दिया है, इनको मैंने,
खुद को दोषी मान लूँ, ये मुमकिन कहाँ?
इंसान जो हूँ!

- प्रशांत गोयल!

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