Thursday, August 16, 2018

सच्ची श्रद्धांजलि !

खूब सर पे उठाया, आँखों का तारा बनाया,
जब तक सिक्का चला, चलाया - इस खुदगर्ज़ ज़माने ने!
जीवन-संध्या तो अकेलेपन में गुज़ारी,
ज़ालिम ज़माने ने याद ना किया!

आज जब अलविदा कह दिया दुनिया को,
अजब सा हुजूम देख रहा हूँ,
ऐ दोस्त! ऐ दोस्त!
सच्ची श्रद्धांजलि दे मुझे, मैं इस दुनिया से ये मांगता हूँ!

किसी अजनबी गरीब को अपना बना,
किसी लड़की को तू यूँ ना जला,
किसी वृद्ध की लाठी का सहारा बन!

मतलब से चलने वाले इंसान,
मैं जानता हूँ तू ये ना कर पायेगा,
सदियों के इस किस्से को कौन बदल पाया है!

कम से कम इतना तो कर,
श्रद्धा के सच्चे दो फूल हि चढ़ा दे,
अपने माँ-बाप की सेवा में ये जीवन लगा दे,
जीवन सफल हो जाएगा!

- प्रशांत गोयल!

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