काश !
कश्मक़श में बीतता आज,
हर जगह दिखता मुझे ये - काश!
कश्मकश ले गयी मुझे मेरे कल में,
वहां भी मिल बैठा ये - काश!
कहता कुछ नहीं, हँसता है मुझपे,
जैसे कह रहा हो,
बुद्धिमान बना फिरता तु,
फिर भी मैं बलवान!
तू है मूर्ख इंसान!
भविष्य में झाँक जरा,
देखा मैंने तो, दिखा कुछ नहीं,
सुन पाया ठहाके की वो जानी पहचानी आवाज़,
शायद वहां भी, छुपकर बैठा है ये - काश!
~ प्रशांत गोयल
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