Wednesday, June 19, 2019

निरंतरता!

२ मई २०१३ 
उसको बेआबरू करना मेरा मकसद नहीं यारों,
हमारी दिल्लगी को भी  शिकायत समझते हैं!

२ मई २०१७ 
शिकायतें खामोशियों में बदल गयी हैं शायद,
अब बेआबरू सिर्फ ख़ामोशी हो,
बस यही तमन्ना है,
हाय ये दिल्लगी, हाय ये दिल्लगी!

१९ जून २०१९ 
हाय ये बेज़ुबान ख़ामोशी,
बेआबरू हुई भी और शोर ना हुआ,
कैसी है ये दिल्लगी, धड़कनो को भी जो पता ना चला,
अलग अलग धड़क रहे थे शायद,
साथ होते तो आग होते,
जलकर उसमे राख़ होते,
पढ़े जाते किस्से और गूँज उठते,
क्या कभी देखी है ऐसी दिल्लगी?

- प्रशांत गोयल