अभिव्यक्ति !!
मन के द्वार पर दस्तक देती,
फिर छुप जाती,
आँखें चुरा, देखती मुझे,
और खो जाती!
कभी ख्वाब में आती,
कभी दिन में ख्वाब दिखाती,
लुक्का छुप्पी के खेल से मुझे सताती,
हौले से मन को मेरे गुद्गुदाति,
और खो जाती!
कानों में धीरे से कुछ कह जाती,
पास बैठ घंटो मेरे, बातेँ बनाती,
कुछ कहना चाहों, तो उड जाती!
वो जो मुझे मिल गयी,
शब्दों के इस समन्दर में,
वो जो कहीं खो गयी,
शब्दों के इस मायाजाल में!!
फिर छुप जाती,
आँखें चुरा, देखती मुझे,
और खो जाती!
कभी ख्वाब में आती,
कभी दिन में ख्वाब दिखाती,
लुक्का छुप्पी के खेल से मुझे सताती,
हौले से मन को मेरे गुद्गुदाति,
और खो जाती!
कानों में धीरे से कुछ कह जाती,
पास बैठ घंटो मेरे, बातेँ बनाती,
कुछ कहना चाहों, तो उड जाती!
वो जो मुझे मिल गयी,
शब्दों के इस समन्दर में,
वो जो कहीं खो गयी,
शब्दों के इस मायाजाल में!!