Monday, December 21, 2009

अधूरा मिलन


चाँद गवाह है इस बात का, सागर और साहिल कि अनगिनत मुलाकात का!
सफ़ेद बाहें फैलाये आता है सागर लहराता हुआ,
साहिल ना जाने फिर भी क्यों खामोश है,
ख़ामोशी को साहिल की झंझराहट कम कर रही है,
मगर ये ख़ामोशी कईं सवाल कर रही है,
क्या ये मिलन कभी पूरा होगा ये पूछ रही है??
दूर बेठा चाँद इस कशिश को समझ, मुस्कुरा रहा,
मन हि मन ये सोच रहा, इन मुलाकातों का क्या कभी अंत होगा...??
सागर भी चाँद को ये बोल पड़ा, अंत क्या हम तो जीते ही इन्ही मुलाकातों के लिए हैं
इसी इंतज़ार में कि साहिल कभी तो अपने बाहें फैलाये मेरे करीब आएगा.....!!
ये इंतज़ार अब भी ज़ारी है....
और चाँद आज भी गवाह है, इस बात का...
....सागर और साहिल कि अनगिनत मुलाकात का!

3 Comments:

Blogger Palak.p said...

ये इंतज़ार अब भी ज़ारी है....
और चाँद आज भी गवाह है, इस बात का...
....सागर और साहिल कि अनगिनत मुलाकात का!
really its very true... shayd kahi na kahi wo intazaar hai ...

anywaz nice poem... keep posting...

Palak

8:29 PM  
Anonymous Prashant said...

Thanks Palak!

8:01 PM  
Blogger rahulatrishi said...

As always kickass work from my kickass bro! :)
Keep rocking...

11:46 PM  

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